There are 4 ways of functioning in life.
1. Gross way (Shudra)- one’s ruled by instincts. Functioning mindlessly without thinking. No alertness; just moving on just like that. It’s similar to how animals function.
The time span of one's passing through this state is called Kali Yuga.
2. Subtle way (Vaisya)- one thinks logically before action. Mindful way applying the brain. Alert and conscious. Intellect is sharpened and applied. The time span of one's passing through this state is called Dwapara Yuga.
3. Subtler way (Kshatriya)- one acknowledges that there is also a possibility for a higher way of living. One believes in a higher power and practices spiritual discipline and dharma. The time span of one's passing through this state is called Treta Yuga.
4. Subtlest way (Bramhan) - A different super intelligence takes over. One understands the presence of this and allows it to take over the mind/ego. The mind is just the witness then and the higher intelligence does all the work. One feels free and blissful. The time span of one's passing through this state is called Satya Yuga.
This is my understanding of the 4 varnas and Yugas or classification in the Hindu system. Varnas are not defined by birth, it’s defined by the life state, and the way of functioning.
Under natural evolution one has to go through these phases. Each phase has a time period and those are the Yugas.
मनुष्य ज़्यादातर ४ तरह से जीवन निर्वाह करते है
१. स्थूल प्रकार : इसमें मनुष्य अपने स्थूल इन्द्रियों के वश में होते है। इन्द्रिय जैसे जैसे मन को खींचती जाती है , इंसान भी उसी प्रकार का व्यवहार करता है । पशु भी इसी तरह से जीवन निर्वाह करते है । ऐसा आचरण जिनके व्यवहार में अधिक दिखता है अने शूद्र वर्ण कहते है । जब इंसान ऐसी मानसिकता से गुजरता है उस समय या काल को कलयुग कहा जा सकता है ।
२. सूक्ष्म प्रकार : इसमें इंसान अपनी बुद्धि और दिमाग का प्रयोग करता है। सोच समझ से निर्णय लेता है । इस स्थिति में बुद्धि का विकास होता है। ऐसा आचरण जब इंसान के जीवन निर्वाह में अधिक दिखता है तो उन्हें वैश्य वर्ण कहा जा सकता है । जब इंसान इस प्रवाह से गुजरता
है, उस समय या काल खंड को द्वापर युग कहा जा सकता है।
३. सुक्षमतर प्रकार : इसमें इंसान अपनी बुद्धि और अहंकार के अतिरिक्त भी एक नई बोध का आभास करता है औरसमझता है कि अपनी शक्ति के ऊपर भी एक परशक्ती है जो इस अनंत ब्रम्हांड को चला रहा है। वह ईश्वर मुखी धर्म परायण होने लगता है। वह मुमुक्षु बन जाता है। वह ईश्वर को जानने की कोशिश करता है और धार्मिक जीवन व्यतीत करता है। जब इंसान में ऐसी भाव का जागरण होता है तो उन्हें क्षत्रिय कहा जा सकता है। जिस कल खंड में यह प्रवाह व्यतीत होता है, उसे त्रेता युग कहा जा सकता है।
५. परा सूक्ष्म प्रकार: इसमें इंसान परा शक्ति या ईश्वर से एकत्व अनुभव करता है और अपने करता होने का अहंकार भी खो देता है। वह परमानंद सच्चितानंद में अवस्थित होता है और देखता है कि पराशक्ति ही कर्ता है। उसका मन सिर्फ साक्षी भाव में रहता है । ऐसी बोध स्थिति को या ऐसी बोध में जो जीवन निर्वाह करता है, उसे ब्राम्हण कहा जा सकता है। इस काल खंड को सत्य युग कहा जा सकता है।
यह स्वयं मेरी धारणा और उपलब्धि से मैंने लिखा है। मेरा मानना यह है कि वर्ण, जन्म से नहीं बल्कि मनोस्थिति से आधारित है। कर्म पे आधारित है। जन्म से कोई जाति नहीं बनती। हम सब एक ही ईश्वर के संतान है, कोई छोटा या बड़ा नहीं। हम सब अलग अलग मोती एक ही धागे से पिरोए हुए है।
Dwaipayan Roy